Monday, February 20, 2017

जाने कहाँ गए वो दिन


मुझे ताज़्ज़ुब होता है 
कि बात क्या थी
हालात क्या थे 
फ़िक्र क्या थी 
हौसले क्या थे 
उम्र क्या थी 
ज़ज़्बात क्या थे 
बहरहाल जो भी था 
बालपन की सुबह थी 
यौवन के दिन थे 
अलसाई सी शामें थीं और 
अलमस्त सी रातें 
वो उम्र भी क्या उम्र थी 
वो स्कूल के दिन
वो कॉलेज के दिन 
ठहाकों कहकहो के दिन 
कसकती मदहोशी के दिन 
मुझे ताज़्ज़ुब होता है 
आखिर वे दिन गए तो गए कहाँ