Thursday, January 5, 2012

रहस्यमई गुफा पाताल भुवनेश्वर ( उत्तराखंड ) - THE CAVE TEMPLE


http://networkoftravellers.com/patal-bhuvneshwar-the-divine-cave-a-mysterious-work-of-nature

कई वर्ष पूर्व जब से उत्तराखंड के गंगोलीहाट (जिला- पिथोरागढ़) में स्थित इस पाताल भुवनेश्वर की रहस्यमई गुफा के बारे में डिस्कवरी और फिर आज तक टी वी में देखा था। तब से  धरती से 90 फीट और समुद्र तल से 1350 मीटर पर बनी इस महादेव जी की रहस्यमई नगरी के दर्शन करने की तीव्र इच्छा थी। 

यहाँ इन रास्तों द्वारा सुगमता से पहुंचा जा सकता है :-

१-   हल्द्वानी से 210 किलोमीटर वाया..अल्मोड़ा - वन्या - पनार - गंगोलीहाट 
२ -  टनकपुर रेलवे स्टेशन से 184 किलोमीटर वाया - चम्पावत - घाट - गंगोलीहाट 
पर्वतों, चीड़, देवदार व पहाड़ी नदियों से घिरा सुरम्य स्थान......देवदार से घिरा नैसर्गिक सोंदर्य का खजाना। 


इस गुफा में प्रवेश करने से पूर्व ही जूते, कैमरे, व अन्य सामान को बाहर ही जमा करा देना होता है। 

यह अति संकीर्ण मुहाने वाली गुफा है। लोगों के आवागमन से लगभग चिकने हो चुके पत्थरों से और छोटी-छोटी 82 सीढ़ियों से सीधे धरती में 92 फीट नीचे पहुँच जाते है। आजकल अंदर बिजली के प्रकाश की पूरी व्यवस्था है, और उसके अंदर प्राकृतिक आक्सीजन की भी कहीं कोई कमी नहीं है।

शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए और अपने आप को फिसलने से बचाने के लिए वहां पर लोहे की मोटी जंजीर लगी हुई हैं। इसे पकड़ कर बेझिझक नीचे उतरा जा सकता है। वापस ऊपर भी इसी रास्ते से आना होता है। नीचे दर्शन करने के लिए, शरीर को सिकोड़कर, पैर मजबूती के साथ टिका कर अति नीचे झुक कर ही जाना संभव है। सभी को झुका कर नत मस्तक करा देता वो भाव कुछ ऐसा था जैसे अपने सभी अहंकारों को बाहर द्वार पर ही छोड़ कर आएंगे, तभी दिव्य लोक की महिमा को समझ पाएंगे। 


नीचे उतरते ही अब एक समतल आ जाता है। वहां पर बिखरा हुआ है सजीव सी दिखतीं सरंचनाओं  वाला एक अद्भुत संसार। वहां पर से सीधे खड़े होकर पूरी गुफा में भ्रमण कर सकते हैं। जगह- जगह पानी के रिसाव से भूमी थोड़ा नम बनी हुई है। 

इस प्राकृतिक गुफा की खोज आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी।  भीतर ताम्रपत्र से सुशोभित एक त्रिलिंगी ( ब्रहा, विष्णु, शंकर ) बना है। उसके ऊपर गुफा की छत से जटाओं की तरह बनी हुई संरचनाओं पर से बूंद-बूंद करके टपकता रहता है। उस जल से तीनो लिंगों का रुद्राभिषेक होता है। कहते हैं पहले यहाँ दूध की धार बहती थी। जो कालांतर में अब जल के रूप में टपकता है। शंकराचार्य ने इस त्रिलिंगी को अपनी कैलाश यात्रा के दौरान यहाँ पर स्थापित किया था। तभी से कैलाश यात्रियों का दल यहाँ के दर्शन  जरूर करता है। 

सबसे पहले बड़ा सा फन फैलाए शेषनाग बना है। कहते हैं इसने अपने फन पर सारी पृथ्वी को धारण कर रखा है।लगभग 160 मीटर लम्बी इस गुफा में आकृतियॉ इतनी सजीव हैं कि देख कर हैरत  होती  है। आप यदि जरा भी भक्ति भाव रखतें हैं तो यहाँ की शक्ति को जरूर महसूस कर पाएंगे। 

यहीं भीतर केदारनाथ, बद्रीनाथ ओर अमरनाथ के दर्शन भी होते हैं। पुराणों में इस पातळ भुवनेश्वर का उल्लेख मिलता है। उसके अनुसार विश्व में पातळ भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं जहाँ चारों धामों के एकसाथ दर्शन होतें हैं। स्कन्द पुराण में मानस खंड के 103 अध्याय से भी पातळ भुवनेश्वर की महिमा के बारे में पढ़ा जा सकता हैं।

इतनी प्राकृतिक आपदाओं के बाद जहाँ नदियाँ व बड़े -बड़े पहाड़ तक अपने रास्तों से विचलित होकर खिसक गए हैं, तब यहाँ ऐसा क्या था जो इतने वर्षों बाद भी सभी संरचनाएं पूर्ववत बनी हुई हैं?

जैसे आदि गणेश के धड़ भाग पर ठीक बीच में मेरुरज्जु के स्थान पर ही कैसे ऊपर गुफा की छत पर बने ब्रहम्म कमल से अमृत जल टपकता है? भीतर शिवशक्ति में त्रिलिंगों पर बूंद -बूंद जल ठीक उनके ऊपर ही रुद्राभिषेक कैसे करता है? कैसे इस गुफा में किसी भी तरह के जीव-जंतु नहीं पाए जाते हैं? क्यों जहाँ पर शिव की जटायें बनी हुई हैं? जल के लगातार बहने पर भी वहाँ पर कैसे काई या चिकनाई नहीं है? जहाँ एरावत हाथी के पैर व शरीर बना है वहाँ पर के पत्थर हाथी की त्वचा जैसे ही कैसे हैं? ब्रम्ह्कपाली पर कैसे ठीक ब्रम्हा जी के कपाल वाले स्थान पर ही टपकते जल से उनका तर्पण हो रहा है? क्या सच में यहाँ पर तर्पण करने से इन्सान मोक्ष को प्राप्त हो जाता है?

इसी तरह के कई सवालों से घिरी आज भी उन रहस्यों व आलोकिक अहसासों को याद करके महसूस करती हुई मैं रोमांचित हो उठती हूँ। 



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